Class 9th Hindi Chapter 3 Question Answer

Class 9 Hindi Chapter 3 – उपभोक्तावाद की संस्कृति | NCERT Solutions with Detailed Answers

Upbhoktavad ki Sanskriti by Shyama Charan Dube is a thought-provoking essay that explores the rise of consumerism in modern society. It highlights how advertisements, material desires, and blind consumption are reshaping our values, relationships, and cultural identity. Below are the NCERT questions and expert answers, rewritten for clarity, depth, and SEO performance.

प्रश्न 1: लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर: लेखक के अनुसार, जीवन का ‘सुख’ केवल भौतिक वस्तुओं के उपभोग तक सीमित नहीं है। वास्तविक सुख में मानसिक शांति, आत्मिक संतोष, सामाजिक संबंधों की मधुरता और नैतिक संतुलन भी शामिल हैं। आज की उपभोक्तावादी सोच ने सुख को केवल वस्तुओं की उपलब्धता और विलासिता से जोड़ दिया है, जिससे व्यक्ति की आंतरिक संतुष्टि और जीवन के मूल उद्देश्य पीछे छूटते जा रहे हैं।

प्रश्न 2: आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

उत्तर: वर्तमान उपभोक्तावादी संस्कृति ने हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित किया है। विज्ञापन और ब्रांडिंग के दबाव में हम अपनी आवश्यकताओं से अधिक वस्तुओं की खरीदारी करने लगे हैं। इससे न केवल आर्थिक असमानता बढ़ रही है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान, पारिवारिक मूल्य और सामाजिक सरोकार भी कमजोर हो रहे हैं। व्यक्ति अब वस्तुओं के माध्यम से प्रतिष्ठा और पहचान खोजने लगा है, जिससे मानसिक तनाव, अकेलापन और आत्मकेंद्रितता बढ़ रही है।

प्रश्न 3: गाँधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?

उत्तर: गाँधी जी का जीवन सादगी, नैतिकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक था। वे मानते थे कि भोगवादी संस्कृति व्यक्ति को स्वार्थी, असंयमी और अनैतिक बना देती है। उपभोक्तावाद के प्रभाव से समाज में वर्गभेद, दिखावा और सांस्कृतिक पतन बढ़ता है। गाँधी जी ने चेताया था कि यदि हम अपनी मूल संस्कृति और नैतिक मूल्यों से दूर हो गए, तो यह उपभोक्ता संस्कृति हमारे समाज की एकता और स्थायित्व के लिए गंभीर चुनौती बन जाएगी।

प्रश्न 4.1: जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।

उत्तर: यह कथन उपभोक्तावादी प्रभाव की गहराई को दर्शाता है। व्यक्ति अब अपने विचारों, इच्छाओं और व्यवहार को बाजार और उत्पादों के अनुसार ढालने लगा है। विज्ञापन और सोशल मीडिया के प्रभाव से हम अनजाने में ही उन वस्तुओं की ओर आकर्षित हो जाते हैं, जिनकी हमें वास्तव में आवश्यकता नहीं होती। यह बदलाव हमारे चरित्र को उपभोग-केंद्रित बना रहा है, जिससे जीवन का उद्देश्य केवल वस्तुओं की प्राप्ति तक सीमित हो गया है।

प्रश्न 4.2: प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।

उत्तर: समाज में प्रतिष्ठा को लेकर अनेक धारणाएँ हैं, जिनमें से कई अत्यंत विचित्र और हास्यास्पद होती हैं। लोग अपनी सामाजिक स्थिति दिखाने के लिए महंगी वस्तुएँ, विलासिता के साधन और अनावश्यक खर्च करते हैं। उदाहरण के तौर पर, अमेरिका में लोग अपने अंतिम संस्कार के लिए संगीत, हरियाली और सजावट की व्यवस्था करते हैं। यह दिखाता है कि उपभोक्तावादी सोच ने मृत्यु जैसे गंभीर विषय को भी दिखावे का माध्यम बना दिया है।

प्रश्न 5: कोई वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या न हो, लेकिन टी.वी. पर विज्ञापन देख कर हम उसे खरीदने के लिए अवश्य लालायित होते हैं। क्यों?

उत्तर: विज्ञापन आज केवल जानकारी देने का माध्यम नहीं, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक दबाव का उपकरण बन चुके हैं। वे हमारे मन में वस्तु के प्रति आकर्षण, आवश्यकता और प्रतिष्ठा का भ्रम पैदा करते हैं। जब हम बार-बार किसी वस्तु को टीवी या सोशल मीडिया पर देखते हैं, तो हमारे भीतर उसे पाने की लालसा उत्पन्न होती है, चाहे वह वस्तु हमारे लिए उपयोगी हो या नहीं। यह उपभोक्तावादी मानसिकता का सीधा परिणाम है।

प्रश्न 6: आपके अनुसार वस्तुओं को खरीदने का आधार वस्तु की गुणवत्ता होनी चाहिए या उसका विज्ञापन? तर्क देकर स्पष्ट करें।

उत्तर: वस्तुओं की खरीद का आधार उनकी गुणवत्ता होना चाहिए, न कि विज्ञापन। विज्ञापन अक्सर आकर्षक दृश्य और भावनात्मक अपील के माध्यम से हमें भ्रमित करते हैं। वे वस्तु के वास्तविक गुण-दोष को छिपाकर केवल उपभोग को बढ़ावा देते हैं। गुणवत्ता पर आधारित खरीदारी न केवल आर्थिक रूप से लाभकारी होती है, बल्कि यह उपभोक्ता को संतोष और स्थायित्व भी प्रदान करती है।

प्रश्न 7: पाठ के आधार पर आज के उपभोक्तावादी युग में पनप रही “दिखावे की संस्कृति” पर विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर: आज का समाज दिखावे की संस्कृति से ग्रस्त हो चुका है। लोग अपनी सामाजिक स्थिति को दर्शाने के लिए महंगे मोबाइल, फैशनेबल कपड़े, ब्रांडेड वस्तुएँ और विलासिता के साधन अपनाते हैं। त्योहारों, समारोहों और यहाँ तक कि मृत्यु के बाद भी दिखावे की प्रवृत्ति देखी जाती है। यह संस्कृति व्यक्ति को आत्मकेंद्रित, असंवेदनशील और भौतिकवादी बना रही है, जिससे सामाजिक संबंधों की गहराई और सांस्कृतिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है।

प्रश्न 8: आज की उपभोक्ता संस्कृति हमारे रीति -रिवाजों और त्योहारों को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?

उत्तर: उपभोक्ता संस्कृति ने हमारे पारंपरिक रीति-रिवाजों और त्योहारों को बाजार केंद्रित बना दिया है। पहले त्योहारों में परिवार और समाज की सहभागिता होती थी, लेकिन अब यह प्रतिस्पर्धा और दिखावे का माध्यम बन गए हैं। कंपनियाँ त्योहारों को बिक्री का अवसर मानती हैं और विज्ञापन के माध्यम से उपभोक्ताओं को आकर्षित करती हैं। इससे त्योहारों की आत्मा, भावनात्मक जुड़ाव और सांस्कृतिक महत्व धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।

प्रश्न 9: भाषा-अध्ययन – क्रिया-विशेषण

(क) पाठ से क्रिया-विशेषण युक्त वाक्य:

  1. धीरे-धीरे समाज की सोच बदल रही है।
  2. विज्ञापन लगातार हमारे मन को प्रभावित कर रहे हैं।
  3. आजकल हर वस्तु की पहचान ब्रांड से होती है।
  4. उपभोक्ता हमेशा नए उत्पादों की तलाश में रहते हैं।
  5. व्यक्ति कम सोचता है, ज़्यादा खरीदता है।

(ख) क्रिया-विशेषण शब्दों से वाक्य:

  • धीरे-धीरे: धीरे-धीरे हमारी संस्कृति बदल रही है।
  • ज़ोर से: वह ज़ोर से चिल्लाया।
  • लगातार: वह लगातार काम कर रहा है।
  • हमेशा: वह हमेशा समय पर आता है।
  • आजकल: आजकल लोग ऑनलाइन खरीदारी करते हैं।
  • कम: कम खर्च में अच्छा सामान मिल गया।
  • ज़्यादा: ज़्यादा दिखावा नुकसानदायक है।
  • यहाँ: यहाँ बहुत भीड़ है।
  • उधर: उधर एक नया मॉल खुला है।
  • बाहर: बाहर जाना सुरक्षित नहीं है।

(ग) क्रिया-विशेषण और विशेषण शब्द:

वाक्य क्रिया-विशेषण विशेषण
कल रात से निरंतर बारिश हो रही है। निरंतर कल रात
पेड़ पर लगे पके आम देखकर बच्चों के मुँह में पानी आ गया। मुँह में पानी पके आम
रसोईघर से आती पुलाव की हल्की खुशबू से मुझे ज़ोरों की भूख लग आई। ज़ोरों की हल्की खुशबू
उतना ही खाओ जितनी भूख है। जितनी उतना
विलासिता की वस्तुओं से आजकल बाजार भरा पड़ा है। आजकल भरा

❓ FAQs – उपभोक्तावाद की संस्कृति

Q1. उपभोक्तावादी संस्कृति क्या है?

उपभोक्तावादी संस्कृति वह सोच है जिसमें व्यक्ति अपनी पहचान और सुख को वस्तुओं के उपभोग से जोड़ता है।

Q2. उपभोक्तावाद से समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है?

यह सामाजिक असमानता, नैतिक पतन, दिखावे की प्रवृत्ति और सांस्कृतिक क्षरण को बढ़ावा देता है।

Q3. क्या उपभोक्तावाद से छुटकारा पाया जा सकता है?

हाँ, यदि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं को समझे, गुणवत्ता को प्राथमिकता दे और आत्मिक संतोष को

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