Class 8th Sanskrit Chapter 2 Hindi Translation

Class 8th Sanskrit Chapter 2 Hindi Translation

EaseEdu Jaipur में हम छात्रों को पाठ्यपुस्तक के कठिन अध्यायों को सरल, रोचक और परीक्षा उपयोगी रूप में प्रस्तुत करते हैं। आज हम कक्षा 8 संस्कृत का अध्याय 2 “बिलस्य वाणी न कदापि” का हिंदी अनुवाद और व्याख्या साझा कर रहे हैं। यह अध्याय एक शिक्षाप्रद कथा है जिसमें चतुराई, संकट से बचाव और बुद्धिमत्ता का सुंदर चित्रण किया गया है।

अध्याय का परिचय

“बिलस्य वाणी न कदापि” एक नीतिकथा है जिसमें एक भूखा सिंह और एक चतुर शृगाल (गीदड़) के बीच की घटना को दर्शाया गया है। यह कहानी हमें सिखाती है कि संकट के समय बुद्धिमत्ता और सतर्कता से जान बचाई जा सकती है।

class 8th sanskrit chapter 2 hindi translation

संस्कृत से हिंदी अनुवाद – पंक्ति दर पंक्ति

संस्कृत वाक्य हिंदी अनुवाद
कस्मश्चित् वने खरनखर: नाम सिंह: प्रतिवसति स्म। किसी वन में खरनखर नामक सिंह निवास करता था।
स: कदाचित् इतस्तत: परिभ्रमन् क्षुधार्त: न किञ्चिदपि आहारं प्राप्तवान्। एक दिन भूख से व्याकुल होकर इधर-उधर घूमते हुए उसे कोई भोजन नहीं मिला।
तत: सूर्यास्तसमये एकां महतीं गुहां दृष्ट्वा स: अचिन्तयत् – “नूनम् एतस्यां गुहायां रात्रौ कोऽपि जीव: आगच्छति।” सूर्यास्त के समय एक बड़ी गुफा देखकर उसने सोचा – “निश्चित रूप से इस गुफा में रात को कोई जीव आता होगा।”
अत: अत्रैव निगूढो भूत्वा तिष्ठामि इति। इसलिए मैं यहीं छिपकर बैठता हूँ।
एतस्मिन् अन्तरे गुहाया: स्वामी दधिपुच्छ: नामक: शृगाल: समागच्छत्। इसी बीच गुफा का मालिक दधिपुच्छ नामक गीदड़ वहाँ आया।
स च यावत् पश्यति तावत् सिंहपदपद्धति: गुहायां प्रविष्टा दृश्यते, न च बहिरागता। जैसे ही उसने देखा, शेर के पंजों के निशान गुफा में जाते हुए दिखे, लेकिन बाहर नहीं आए।
शृगाल: अचिन्तयत् – “अहो विनष्टोऽस्मि। नूनम् अस्मिन् बिले सिंह: अस्तीति तर्कयामि।” गीदड़ सोचने लगा – “अरे, मैं तो मारा गया। निश्चित रूप से इस बिल में शेर है।”
तत् किं करवाणि? अब क्या करूँ?
एवं विचिन्त्य दूरस्थ: रवं कर्तुमारब्ध: – “भो बिल! किं न स्मरसि यन्मया त्वया सह समय: कृतोऽस्ति?” ऐसा सोचकर दूर खड़े होकर उसने आवाज लगाई – “अरे बिल! क्या तुम्हें याद नहीं, हमने समझौता किया था?”
यदि त्वं मां न आह्वयसि तर्हि अहं द्वितीयं बिलं यास्यामि इति। अगर तुम मुझे नहीं बुलाते, तो मैं दूसरे बिल में चला जाऊँगा।
अथ एतच्छु्रत्वा सिंह: अचिन्तयत् – “नूनमेषा गुहा स्वामिन: सदा समाह्वानं करोति; परन्तु मद्भयात् न किञ्चित् वदति।” यह सुनकर शेर सोचने लगा – “यह गुफा अपने मालिक को रोज बुलाती होगी, लेकिन आज मेरे डर से चुप है।”
अथवा साध्विदम् उच्यते – भयसन्त्रस्तमनसां हस्तपादादिका: क्रिया:। प्रवर्तन्ते न वाणी च वेपथुश्चाधिको भवेत्॥ यह सही कहा गया है – भयभीत मन वाले लोगों की वाणी और क्रियाएँ ठीक से नहीं चलतीं, और शरीर में अधिक कंपन होता है।
तदहम् अस्य आह्वानं करोमि। इसलिए मैं इसे बुलाता हूँ।
इत्थं विचार्य सिंह: सहसा शृगालस्य आह्वानमकरोत्। ऐसा सोचकर शेर ने गीदड़ को बुलाया।
सिंहस्य उच्चगर्जन-प्रतिध्वनिना सा गुहा उच्चै: शृगालम् आह्वयत्। शेर की ऊँची गर्जना की गूंज से गुफा ने जोर से गीदड़ को बुलाया।
अनेन अन्येऽपि पशव: भयभीता: अभवन्। इससे अन्य पशु भी डर गए।
शृगालोऽपि तत: दूरं पलायमान: इममपठत् – अनागतं य: कुरुते स शोभते स शोच्यते यो न करोत्यनागतम्। गीदड़ भी दूर भागता हुआ यह श्लोक पढ़ने लगा – जो व्यक्ति आने वाले संकट का उपाय करता है, वह प्रशंसा पाता है; जो नहीं करता, वह पछताता है।
वनेऽत्र संस्थस्य समागता जरा बिलस्य वाणी न कदापि मे श्रुता॥ इस वन में रहते हुए मैं बूढ़ा हो गया हूँ, लेकिन मैंने कभी भी बिल की आवाज नहीं सुनी।

अध्याय की व्याख्या

यह कहानी एक नीतिपरक दृष्टिकोण से लिखी गई है। सिंह की भूख उसे चालाकी करने पर मजबूर करती है, लेकिन गीदड़ की सतर्कता और बुद्धिमत्ता उसे संकट से बचा लेती है। गीदड़ ने परिस्थिति का सूक्ष्म निरीक्षण किया और बिना गुफा में प्रवेश किए ही खतरे को भांप लिया।

शिक्षाप्रद संदेश

  • बुद्धिमत्ता संकट से बचा सकती है
  • भय में विवेक खोना नहीं चाहिए
  • परिस्थिति का विश्लेषण करना आवश्यक है
  • अनुभव और सतर्कता जीवन रक्षा में सहायक होते हैं

EaseEdu की सलाह

  • इस अध्याय को समझने के लिए केवल अनुवाद नहीं, बल्कि भाव भी समझें।
  • संस्कृत श्लोकों को अर्थ सहित याद करें।
  • परीक्षा में इस अध्याय से अनुवाद, श्लोक व्याख्या, कहानी का सारांश और शिक्षा जैसे प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

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