Class 10 Sanskrit Chapter 7 – विचित्रः साक्षी | Full Hindi Translation with Meaning
विचित्रः साक्षी’ एक प्रेरणादायक न्यायिक कथा है, जिसमें प्रसिद्ध बंग साहित्यकार बंकिमचंद्र चटर्जी एक न्यायाधीश के रूप में बिना प्रत्यक्ष प्रमाण के बुद्धि, तर्क और विवेक से न्याय करते हैं। यह कहानी एक गरीब व्यक्ति, एक निर्दोष अतिथि और एक चालाक चोर (जो स्वयं सिपाही है) के इर्द-गिर्द घूमती है। न्यायाधीश की सूझबूझ इस पाठ का मुख्य संदेश है।
Class 10 Sanskrit Chapter 7 – विचित्रः साक्षी
| 📜 संस्कृत वाक्य | 🇮🇳 हिंदी अनुवाद |
|---|---|
| कश्चन निर्धनो जनः भूरि परिश्रम्य किञ्चिद् वित्तमुपार्जितवान्। | एक गरीब व्यक्ति ने खूब मेहनत करके कुछ धन कमाया। |
| तेन वित्तेन स्वपुत्रम् एकस्मिन् महाविद्यालये प्रवेशं दापयितुं सफलो जातः। | उस धन से उसने अपने पुत्र को एक कॉलेज में प्रवेश दिलाया। |
| तत्तनयः तत्रैव छात्रावासे निवसन् अध्ययने संलग्नः समभूत्। | उसका पुत्र वहीं छात्रावास में रहकर पढ़ाई में लग गया। |
| एकदा स पिता तनूजस्य रुग्णतामाकर्ण्य व्याकुलो जातः पुत्रं द्रष्टुं च प्रस्थितः। | एक दिन पिता को बेटे की बीमारी की खबर मिली, वह व्याकुल होकर उसे देखने चल पड़ा। |
| परमर्थकार्श्येन पीडितः स बसयानं विहाय पदातिरेव प्राचलत्। | धन की कमी के कारण उसने बस की यात्रा छोड़ दी और पैदल ही चल पड़ा। |
| पदातिक्रमेण संचलन् सायं समयेऽप्यसौ गन्तव्याद् दूरे आसीत्। | शाम तक भी वह अपने गंतव्य से दूर ही था। |
| निशान्धकारे प्रसृते विजने प्रदेशे पदयात्रा न शुभावहा। | रात के अंधेरे में निर्जन स्थान पर पैदल यात्रा शुभ नहीं होती। |
| एवं विचार्य स पार्श्वस्थिते ग्रामे रात्रिनिवासं कर्तुं कञ्चिद् गृहस्थमुपागतः। | ऐसा सोचकर वह पास के गाँव में रात बिताने के लिए एक गृहस्थ के घर गया। |
| करुणापरो गृही तस्मै आश्रयं प्रायच्छत्। | दयालु गृहस्थ ने उसे आश्रय दे दिया। |
| विचित्रा दैवगति:। | भाग्य की गति विचित्र होती है। |
| तस्यामेव रात्रौ तस्मिन् गृहे कश्चन चौरः गृहाभ्यन्तरं प्रविष्टः। | उसी रात उस घर में एक चोर घुस गया। |
| तत्र निहितामेकां मञ्जूषाम् आदाय पलायितः। | वहाँ रखी एक संदूक को लेकर वह भाग गया। |
| चौरस्य पादध्वनिना प्रबुद्धोऽतिथि: चौरशङ्कया तमन्वधावत् अगृह्णाच्च। | चोर के पैरों की आवाज से अतिथि जाग गया, उसने चोर समझकर उसका पीछा किया और पकड़ लिया। |
| परं तदानीमेव किञ्चिद् विचित्रमघटत। | लेकिन तभी एक विचित्र घटना घटी। |
| चौरः एव उच्चैः क्रोशितुमारभत ‘‘चौरोऽयं चौरोऽयम्’’ इति। | चोर ने ही जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया – “यह चोर है! यह चोर है!” |
| तस्य तारस्वरेण प्रबुद्धाः ग्रामवासिनः स्वगृहाद् निष्क्रम्य तत्रागच्छन्। | उसकी तेज आवाज सुनकर गाँववाले जागे और वहाँ आ पहुँचे। |
| वराकम् अतिथिमेव च चौरं मत्वा अभर्त्सयन्। | उन्होंने बेचारे अतिथि को ही चोर समझकर डाँटा। |
| यद्यपि ग्रामस्य आरक्षी एव चौर आसीत्। | जबकि गाँव का सिपाही ही असली चोर था। |
| तत्क्षणमेव रक्षापुरुषः तम् अतिथिं ‘‘चौरोऽयम्’’ इति प्रख्याप्य कारागृहे प्राक्षिपत्। | उसी समय सिपाही ने अतिथि को चोर घोषित कर जेल में डाल दिया। |
| अग्रिमे दिने स आरक्षी चौर्याभियोगे तं न्यायालयं नीतवान्। | अगले दिन सिपाही उसे चोरी के आरोप में न्यायालय ले गया। |
| न्यायाधीशो बंकिमचन्द्रः उभाभ्यां पृथक् पृथक् विवरणं श्रुतवान्। | न्यायाधीश बंकिमचंद्र ने दोनों से अलग-अलग विवरण सुना। |
| सर्वं वृत्तम् अवगत्य स तं निर्दोषम् अमन्यत आरक्षिणं च दोषभाजनम्। | सब कुछ जानकर उन्होंने अतिथि को निर्दोष और सिपाही को दोषी माना। |
| किन्तु प्रमाणाभावात् स निर्णेतुं न अशक्नोत्। | लेकिन प्रमाण के अभाव में वे निर्णय नहीं कर सके। |
| ततोऽसौ तौ अग्रिमे दिने उपस्थातुम् आदिष्टवान्। | उन्होंने दोनों को अगले दिन उपस्थित होने का आदेश दिया। |
| अन्येद्युः तौ न्यायालये स्वस्वपक्षं पुनः स्थापितवन्तौ। | अगले दिन दोनों ने न्यायालय में अपने-अपने पक्ष फिर से रखे। |
| तदैव कश्चित् तत्रत्यः कर्मचारी समागत्य न्यवेदयत्। | तभी एक कर्मचारी वहाँ आकर निवेदन करता है। |
| यत् इतः क्रोशद्वयान्तराले कश्चिज्जनः केनापि हतः। | कि यहाँ से दो कोस दूर एक व्यक्ति किसी के द्वारा मारा गया है। |
| तस्य मृतशरीरं राजमार्गं निकषा वर्तते। | उसकी लाश राजमार्ग के पास पड़ी है। |
| न्यायाधीशः आरक्षिणं अभियुक्तं च तं शवं न्यायालये आनेतुम् आदिष्टवान्। | न्यायाधीश ने सिपाही और अभियुक्त को लाश लाने का आदेश दिया। |
| आदेशं प्राप्य उभौ प्राचलताम्। | आदेश पाकर दोनों चल पड़े। |
| तत्रोपेत्य काष्ठपटले निहितं पटाच्छादितं देहं स्कन्धेन वहन्तौ न्यायाधिकरणं प्रति प्रस्थितौ। | वहाँ पहुँचकर लकड़ी के तख़्त पर रखे कपड़े से ढके शरीर को कंधे पर उठाकर न्यायालय की ओर चले। |
| आरक्षी सुपुष्टदेह आसीत्, अभियुक्तश्च अतीव कृशकायः। | सिपाही मजबूत शरीर वाला था, अभियुक्त बहुत कमजोर। |
| स भारवेदनया क्रन्दति स्म। | वह बोझ के दर्द से रो रहा था। |
| तस्य क्रन्दनं निशम्य मुदित आरक्षी तम् उवाच। | उसका रोना सुनकर प्रसन्न सिपाही बोला। |
| ‘‘रे दुष्ट! तस्मिन् दिने त्वया अहं चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणात् वारितः। | “अरे दुष्ट! उस दिन तूने मुझे चोरी की संदूक लेने से रोका था। |
| इदानीं निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व। | अब अपने कर्म का फल भोग। |
| अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे’’ इति प्रोच्य उच्चैः अहसत्। | इस चोरी के आरोप में तू तीन साल की जेल पाएगा।” ऐसा कहकर जोर से हँसा। |
| यथाकथञ्चित् उभौ शवम् आनीय एकस्मिन् चत्वरे स्थापितवन्तौ। | जैसे-तैसे दोनों ने शव को लाकर एक चौराहे पर रखा। |
| न्यायाधीशेन पुनः तौ घटनायाः विषये वक्तुम् आदिष्टौ। | न्यायाधीश ने फिर दोनों को घटना बताने का आदेश दिया। |
| आरक्षिणि निजपक्षं प्रस्तुतवति आश्चर्यम् अघटत्। | सिपाही ने अपना पक्ष रखा, तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी। |
| स शवः प्रावारकम् अपसार्य न्यायाधीशम् अभिवाद्य निवेदितवान्। | वह शव चादर हटाकर न्यायाधीश को प्रणाम करके बोला। |
| ‘‘मान्यवर! एतेन आरक्षिणा अध्वनि यदुक्तं तद् वर्णयामि। | “महोदय! इस सिपाही ने रास्ते में जो कहा, वह मैं सुन रहा था।” |
| ‘त्वया अहं चोरिताया मञ्जूषाया ग्रहणात् वारितः। | ‘तूने मुझे चोरी की संदूक लेने से रोका था।’ |
| अतः निजकृत्यस्य फलं भुङ्क्ष्व। | इसलिए अब अपने कर्म का फल भोग। |
| अस्मिन् चौर्याभियोगे त्वं वर्षत्रयस्य कारादण्डं लप्स्यसे’ इति। | इस चोरी के आरोप में तू तीन साल की जेल पाएगा।” |
| न्यायाधीशः आरक्षिणं कारादण्डं आदिश्य तं जनं ससम्मानं मुक्तवान्। | न्यायाधीश ने सिपाही को जेल भेजा और उस व्यक्ति को सम्मानपूर्वक मुक्त कर दिया। |
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पाठ का निष्कर्ष (Conclusion)
यह कहानी दर्शाती है कि बुद्धि, विवेक और युक्ति से न्याय किया जा सकता है, भले ही प्रत्यक्ष प्रमाण न हों। न्यायाधीश बंकिमचंद्र चटर्जी ने एक मृत प्रतीत होने वाले व्यक्ति को साक्षी बनाकर सच्चाई उजागर की।
श्लोक सार: “दुष्कराण्यपि कर्माणि मतिवैभवशालिनः। नीतिं युक्तिं समालम्ब्य लीलयैव प्रकुर्वते॥”
👉 बुद्धिमान व्यक्ति नीति और युक्ति का सहारा लेकर कठिन कार्य भी सहजता से कर लेते हैं।
FAQs – परीक्षा के लिए उपयोगी प्रश्नोत्तर
Q1. इस पाठ का मुख्य संदेश क्या है?
👉 कि न्याय केवल प्रत्यक्ष प्रमाणों पर नहीं, बल्कि बुद्धि और तर्क पर भी आधारित हो सकता है।
Q2. विचित्र साक्षी कौन था?
👉 वह व्यक्ति जिसे मृत समझा गया था, लेकिन जिसने सिपाही की बात सुनकर न्यायालय में साक्ष्य प्रस्तुत किया।
Q3. न्यायाधीश ने निर्णय कैसे लिया?
👉 उन्होंने सिपाही की बातचीत को साक्ष्य मानकर तर्क के आधार पर निर्णय लिया।
Q4. पाठ में कौन-कौन से मुख्य पात्र हैं?
👉 निर्धन पिता, उसका पुत्र, अतिथि (निर्दोष व्यक्ति), चोर (सिपाही), न्यायाधीश बंकिमचंद्र।
Q5. इस पाठ से छात्रों को क्या सीख मिलती है?
👉 सतर्कता, विवेक और धैर्य से कठिन परिस्थितियों में भी सच्चाई सामने लाई जा सकती है।
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