Class 10 Sanskrit Chapter 6 Hindi Translation

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कक्षा 10 संस्कृत पाठ 6: सौहार्दं प्रकृतेः शोभा

कक्षा 10 संस्कृत का पाठ 6 – “सौहार्दं प्रकृतेः शोभा” केवल एक गद्य-पाठ नहीं, बल्कि एक गहन संवाद है जो हमें प्रकृति से सीखने, नेतृत्व की योग्यता को समझने और सामाजिक सौहार्द की महत्ता को पहचानने की प्रेरणा देता है। इस पाठ में जंगल के विभिन्न जीव—सिंह, वानर, गज, काक, पिक, बक, मयूर, उलूक आदि—राज्य के नेतृत्व के लिए अपने-अपने तर्क प्रस्तुत करते हैं। लेकिन अंत में प्रकृति माता का प्रवेश इस विवाद को समाप्त करता है और सभी को एकता, सहयोग और प्रेम का संदेश देती है।

EaseEdu इस पाठ का सरल हिंदी अनुवाद, व्याकरणीय विश्लेषण और परीक्षा उपयोगी सारांश प्रस्तुत करता है ताकि छात्र न केवल पाठ को समझें, बल्कि संस्कृत में श्रेष्ठ अंक भी प्राप्त कर सकें।

दृश्य प्रारंभ

संस्कृत वाक्य: वनस्य दृश्यं समीपे एवैका नदी वहति।

हिंदी अनुवाद: वन का दृश्य। पास में ही एक नदी बह रही है।

सिंह और वानर संवाद

संस्कृत वाक्य: क्रुद्ध: सिंह: तं प्रहर्तुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा वृक्षमारूढ:।

हिंदी अनुवाद: क्रोधित शेर उस पर प्रहार करना चाहता है, परन्तु बन्दर कूदकर पेड़ पर चढ़ जाता है।

संस्कृत वाक्य: तदैव अन्यस्मात्‌ वृक्षात्‌ अपर: वानर: सिंहस्य कर्णमाकृष्य पुन: वृक्षोपरि आरोहति।

हिंदी अनुवाद: तभी दूसरे पेड़ पर दूसरा बन्दर शेर के कान को खींचकर फिर पेड़ पर चढ़ जाता है।

संस्कृत वाक्य: एवमेव वानरा: वारं वारं सिंहं तुदन्ति।

हिंदी अनुवाद: ऐसे बन्दर बार-बार शेर को तंग करते हैं।

सिंह की प्रतिक्रिया

संस्कृत वाक्य: क्रुद्ध: सिंह: इतस्तत: धावति, गर्जति परं किमपि कर्तुमसमर्थ: एव तिष्ठति।

हिंदी अनुवाद: क्रोधित सिंह इधर-उधर दौड़ता है, गरजता है, परन्तु कुछ भी करने में असमर्थ ही रहता है।

संस्कृत वाक्य: वानरा: हसन्ति वृक्षोपरि च विविधा: पक्षिण: अपि सिंहस्य एतादृशीं दशां दृष्ट्‌वा हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति।

हिंदी अनुवाद: बन्दर हँसते हैं और वृक्ष के ऊपर अनेक प्रकार के पक्षी भी शेर की ऐसी दशा देखकर खुशी से मिलीजुली चहचहाहट करते हैं।

वानर का तर्क

संस्कृत वाक्य: सिंह: – (क्रोधेन गर्जन्‌) भो:! अहं वनराज:, किं भयं न जायते? किमर्थं मामेवं तुदन्ति सर्वे मिलित्वा?

हिंदी अनुवाद: सिंह – (क्रोध से गरजता हुआ) अरे! मैं जंगल का राजा हूँ, फिर भी सब मिलकर मुझे तंग क्यों कर रहे हैं?

संस्कृत वाक्य: एक: वानर: – यत: त्वं वनराज: भवितुं तु सर्वथाऽयोग्य:।

हिंदी अनुवाद: एक बन्दर – क्योंकि तुम जंगल के राजा बनने के लिए पूरी तरह से अयोग्य हो।

संस्कृत वाक्य: राजा तु रक्षक: भवति परं भवान्‌ तु भक्षक:।

हिंदी अनुवाद: राजा तो रक्षक होता है, परन्तु आप तो भक्षक हैं।

संस्कृत वाक्य: अपि च स्वरक्षायामपि समर्थ: नासि, तर्हि कथमस्मान्‌ रक्षिष्यसि?

हिंदी अनुवाद: और आप अपनी भी रक्षा करने में समर्थ नहीं हैं, तो हमारी रक्षा कैसे करेंगे?

पक्षियों की बहस

संस्कृत वाक्य: अन्य: वानर: – किं न श्रुता त्वया पञ्चतन्त्रोक्ति: – यो न रक्षति वित्रस्तान्‌ पीड्‌यमाना परै: सदा।

हिंदी अनुवाद: दूसरा बन्दर – क्या तुमने पंचतंत्र की यह उक्ति नहीं सुनी? – जो राजा डरे हुए और पीड़ित जन्तुओं की रक्षा नहीं करता…

संस्कृत वाक्य: जन्तून्‌ पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशय:॥

हिंदी अनुवाद: वह साक्षात् यमराज होता है, इसमें कोई संदेह नहीं।

संस्कृत वाक्य: काक: – आम्‌ सत्यं कथितं त्वया- वस्तुत: वनराज: भवितुं तु अहमेव योग्य:।

हिंदी अनुवाद: कौआ – हाँ, तुमने सच कहा। वास्तव में जंगल का राजा बनने के लिए मैं ही योग्य हूँ।

संस्कृत वाक्य: पिक: – (उपहसन्‌) कथं त्वं योग्य: वनराज: भवितुं, यत्र तत्र का-का इति कर्कशध्वनिना वातावरणमाकुलीकरोषि।

हिंदी अनुवाद: कोयल – (मज़ाक करती हुई) तुम कैसे योग्य हो, जो काँव-काँव की कठोर आवाज़ से वातावरण को अशांत करते हो?

कौआ का प्रत्युत्तर

संस्कृत वाक्य: काक: – अरे! अरे! किं जल्पसि? यदि अहं कृष्णवर्ण: तर्हि त्वं किं गौराङ्‌ग:?

हिंदी अनुवाद: कौआ – अरे! अरे! क्या बड़बड़ाती हो? अगर मैं काले रंग का हूँ, तो क्या तुम गोरी हो?

संस्कृत वाक्य: अपि च विस्मर्यते किं यत्‌ मम सत्यप्रियता तु जनानां कृते उदाहरणस्वरूपा- ‘अनृतं वदसि चेत्‌ काक: दशेत्‌’- इति प्रकारेण।

हिंदी अनुवाद: और क्या तुम भूल गई कि मेरी सत्यप्रियता तो कहावतों में भी उदाहरण के रूप में दी जाती है – ‘झूठ बोलोगे तो कौआ काटेगा’।

पक्षियों की तुलना

संस्कृत वाक्य: पिक: – अलम्‌ अलम्‌ अतिविकत्थनेन। किं विस्मर्यते यत्‌- काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण: को भेद: पिककाकयो:?

हिंदी अनुवाद: कोयल – बस करो, ज़्यादा डींगें मत मारो। क्या भूल गए कि कौआ भी काला है और कोयल भी? दोनों में क्या फर्क है?

संस्कृत वाक्य: वसन्तसमये प्राप्ते काक: काक: पिक: पिक:॥

हिंदी अनुवाद: वसंत ऋतु आने पर ही फर्क पता चलता है – तब कौआ कौआ होता है और कोयल कोयल।

गज का प्रवेश

संस्कृत वाक्य: गज: – समीपत: एवागच्छन्‌ अरे अरे संवर् सम्भाषणं श्रुत्वा अहम्‌ अत्र आगच्छम्‌।

हिंदी अनुवाद: हाथी – पास से ही आते हुए, अरे! अरे! सारी बातचीत सुनकर मैं यहाँ आया हूँ।

गज का दावा

संस्कृत वाक्य: अहं विशालकाय:, बलशाली, पराक्रमी च।

हिंदी अनुवाद: मैं बहुत बड़े शरीर वाला, बलवान और पराक्रमी हूँ।

संस्कृत वाक्य: सिंह: वा स्यात्‌ अथवा अन्य: कोऽपि, वन्यपशून्‌ तु तुदन्तं जन्तुमहं स्वशुण्डेन पोथयित्वा मारयिष्यामि।

हिंदी अनुवाद: शेर हो या कोई और, जो भी वन्य जीवों को तंग करेगा, मैं उसे अपनी सूँड से पटक-पटककर मार डालूँगा।

संस्कृत वाक्य: किमन्य: कोऽप्यस्ति एतादृश: पराक्रमी।

हिंदी अनुवाद: क्या कोई और ऐसा पराक्रमी है?

संस्कृत वाक्य: अत: अहमेव योग्य: वनराजपदाय।

हिंदी अनुवाद: इसलिए मैं ही जंगल के राजा के पद के लिए योग्य हूँ।

वानर का प्रत्युत्तर

संस्कृत वाक्य: वानर: – अरे! अरे! एवं वा (शीघ्रमेव गजस्यापि पुच्छं विधूय वृक्षोपरि आरोहति।)

हिंदी अनुवाद: बन्दर – अरे! अरे! ऐसे ही (जल्दी से हाथी की पूँछ मरोड़कर पेड़ पर चढ़ जाता है।)

संस्कृत वाक्य: गज: तं वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा अन्यं वृक्षमारोहति।

हिंदी अनुवाद: हाथी उस पेड़ को अपनी सूँड से हिलाना चाहता है, लेकिन बन्दर कूदकर दूसरे पेड़ पर चढ़ जाता है।

संस्कृत वाक्य: एवं गजं वृक्षात्‌ वृक्षं प्रति धावन्तं दृष्ट्‌वा सिंह: अपि हसति वदति च।

हिंदी अनुवाद: हाथी को एक पेड़ से दूसरे पेड़ की ओर दौड़ते देखकर शेर भी हँसता है और कहता है—

संस्कृत वाक्य: सिंह: – भो: गज! मामप्येवमेवातुदन्‌ एते वानरा:।

हिंदी अनुवाद: हे हाथी! मुझे भी इन बन्दरों ने ऐसे ही तंग किया था।

वानर का नेतृत्व दावा

संस्कृत वाक्य: वानर: – एतस्मादेव तु कथयामि यदहमेव योग्य: वनराजपदाय येन विशालकायं पराक्रमिणं, भयंकरं चापि सिहं गजं वा पराजेतुं समर्था अस्माकं जाति:।

हिंदी अनुवाद: इसलिए मैं कहता हूँ कि मैं ही वनराज के पद के लिए योग्य हूँ, क्योंकि हमारी जाति शेर और हाथी जैसे बलवान और भयंकर जीवों को भी पराजित कर सकती है।

संस्कृत वाक्य: अत: वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमा:।

हिंदी अनुवाद: इसलिए जंगल के जीवों की रक्षा के लिए हम ही योग्य हैं।

बक का प्रवेश

संस्कृत वाक्य: (एतत्सर्वं श्रुत्वा नदीमध्यस्थित: एक: बक:)

हिंदी अनुवाद: यह सब सुनकर नदी के बीच स्थित एक बगुला—

संस्कृत वाक्य: बक: – अरे! अरे! मां विहाय कथमन्य: कोऽपि राजा भवितुमर्हति।

हिंदी अनुवाद: बगुला – अरे! अरे! मुझे छोड़कर कोई और राजा कैसे हो सकता है?

संस्कृत वाक्य: अहं तु शीतले जले बहुकालपर्यन्तम्‌ अविचल: ध्यानमग्न: स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षाया: उपायान्‌ चिन्तयिष्यामि…

हिंदी अनुवाद: मैं तो ठंडे जल में बहुत समय तक स्थिर, ध्यान में मग्न योगी की तरह रहकर सभी की रक्षा के उपाय सोचूँगा…

संस्कृत वाक्य: …योजनां निर्मीय च स्वसभायां विविधपदमलंकुर्वाणै: जन्तुभिश्च मिलित्वा रक्षोपायान्‌ क्रियान्वितान्‌ कारयिष्यामि।

हिंदी अनुवाद: …और योजना बनाकर अपनी सभा में विभिन्न पदों से सुसज्जित जीवों के साथ मिलकर रक्षा के उपायों को कार्यान्वित कराऊँगा।

संस्कृत वाक्य: अत: अहमेव वनराजपदप्राप्तये योग्य:।

हिंदी अनुवाद: इसलिए मैं ही जंगल के राजा के पद के लिए योग्य हूँ।

मयूर का विरोध

संस्कृत वाक्य: मयूर: – (वृक्षोपरित:-अट्‌टहासपूर्वकम्‌) विरम विरम आत्मश्लाघाया: किं न जानासि यत्‌- यदि न स्यान्नरपति: सम्यङ्‌नेता ।

हिंदी अनुवाद: मोर – (पेड़ से ज़ोर से हँसते हुए) अपनी प्रशंसा करना बंद करो। क्या तुम नहीं जानते कि यदि राजा अच्छा नेता न हो…

संस्कृत वाक्य: तत: प्रजा अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥

हिंदी अनुवाद: …तो उसकी प्रजा बिना दिशा की नौका की तरह संसार रूपी समुद्र में डूब जाती है।

संस्कृत वाक्य: मोर- को न जानाति तव ध्यानावस्थाम्‌।

हिंदी अनुवाद: मोर – तुम्हारी ध्यान की अवस्था कौन नहीं जानता?

संस्कृत वाक्य: ‘स्थितप्रज्ञ’ इति व्याजेन वराकान्‌ मीनान्‌ छलेन अधिगृह्‌य क्रूरतया भक्षयसि।

हिंदी अनुवाद: ‘स्थितप्रज्ञ’ का बहाना बनाकर तुम बेचारी मछलियों को छल से पकड़कर निर्दयता से खा जाते हो।

संस्कृत वाक्य: धिक्‌ त्वाम्‌। तव कारणात्‌ तु सर्वं पक्षिकुलम्‌ अवमानितं जातम्‌।

हिंदी अनुवाद: तुम्हें धिक्कार है। तुम्हारे कारण से पूरा पक्षिकुल अपमानित हो गया है।

वानर का अंतिम दावा

संस्कृत वाक्य: वानर: – (सगर्वम्‌) अत एव कथयामि यत्‌ अहमेव योग्य: वनराजपदाय।

हिंदी अनुवाद: बन्दर – (गर्व से) इसलिए मैं कहता हूँ कि मैं ही वनराज के पद के लिए योग्य हूँ।

मयूर का दावा

संस्कृत: शीघ्रमेव मम राज्याभिषेकाय तत्परा: भवन्तु सर्वे वन्यजीवा:।

हिंदी: सभी वन के जीव शीघ्र ही मेरे राज्याभिषेक के लिए तैयार हों।

संस्कृत: मयूर: – अरे वानर! तूष्णीं भव। कथं त्वं योग्य: वनराजपदाय?

हिंदी: मोर – अरे बन्दर! चुप हो जा। तू जंगल के राजा के पद के लिए कैसे योग्य है?

संस्कृत: पश्यतु पश्यतु मम शिरसि राजमुकुटमिव शिखां स्थापयता विधात्रा एवाहं पक्षिराज: कृत:।

हिंदी: देखो-देखो! मेरे सिर पर राजमुकुट जैसी चोटी को स्थापित करने वाले विधाता ने ही मुझे पक्षियों का राजा बनाया है।

संस्कृत: अत: वने निवसन्तं मां वनराजरूपेणापि द्रष्टुं सज्जा: भवन्तु अधुना।

हिंदी: इसलिए वन में रहने वाले सभी मुझे जंगल के राजा के रूप में देखने के लिए तैयार हों।

पक्षियों की बहस

संस्कृत: यत: कथं काऽप्यन्य: विधातु: निर्णयम्‌ अन्यथाकर्तुं क्षम:?

हिंदी: क्योंकि कोई भी विधाता के निर्णय को बदलने में समर्थ नहीं है।

संस्कृत: काक: – (सव्यङ्ग्यम्‌) अरे अहिभुक्‌! नृत्यातिरिक्तं का तव विशेषता यत्‌ त्वां वनराजपदाय योग्यं मन्यामहे वयम्‌।

हिंदी: कौआ – (व्यंग्य से) अरे साँप खाने वाले! नाचने के अलावा तुम्हारी क्या विशेषता है जो हम तुम्हें जंगल के राजा के लिए योग्य मानें?

संस्कृत: मयूर: – यत: मम नृत्यं तु प्रकृते: आराधना।

हिंदी: मोर – क्योंकि मेरा नृत्य प्रकृति की पूजा है।

संस्कृत: पश्य! पश्य! मम पिच्छानामपूर्वं सौंदर्यम्‌… न कोऽपि त्रैलोक्ये मत्सदृश: सुन्दर:।

हिंदी: देखो! मेरे पंखों की अनोखी सुंदरता! तीनों लोकों में कोई भी मेरे जैसा सुंदर नहीं है।

संस्कृत: वन्यजन्तूनामुपरि आक्रमणं कर्तारं तु अहं स्वसौन्दर्येण नृत्येन च आकर्षितं कृत्वा वनात्‌ बहिष्करिष्यामि।

हिंदी: जंगल के जीवों पर हमला करने वाले को मैं अपनी सुंदरता और नृत्य से आकर्षित कर जंगल से बाहर कर दूँगा।

संस्कृत: अत: अहमेव योग्य: वनराजपदाय।

हिंदी: इसलिए मैं ही जंगल के राजा के पद के लिए योग्य हूँ।

बाघ और चीता का प्रवेश

संस्कृत: (एतस्मिन्नेव काले व्याघ्रचित्रकौ अपि नदीजलं पातुमागतौ…)

हिंदी: इसी समय बाघ और चीता भी नदी का जल पीने आए और विवाद सुनकर बोले—

संस्कृत: व्याघ्रचित्रकौ – अरे किं वनराजपदाय सुपात्रं चीयते?

हिंदी: बाघ और चीता – क्या जंगल के राजा के लिए कोई योग्य पात्र चुना जा रहा है?

संस्कृत: एतदर्थ तु आवामेव योग्यौ…

हिंदी: इस कार्य के लिए हम दोनों ही योग्य हैं। चयन सबकी सहमति से हो।

संस्कृत: सिंह: – तूष्णीं भव भो:। युवामपि मत्सदृशौ भक्षकौ न तु रक्षकौ।

हिंदी: सिंह – चुप रहो! तुम दोनों भी मेरी तरह भक्षक हो, रक्षक नहीं।

संस्कृत: एते वन्यजीवा: भक्षकं रक्षकपदयोग्यं न मन्यन्ते…

हिंदी: जंगल के जीव भक्षक को रक्षक के पद के योग्य नहीं मानते, इसलिए विचार-विमर्श चल रहा है।

पक्षियों का निर्णय

संस्कृत: वस्तुत: एव सिंहेन बहुकालपर्यन्तं शासनं कृतम्‌…

हिंदी: वास्तव में शेर ने बहुत समय तक शासन किया है, पर अब कोई पक्षी ही राजा बने, इसमें कोई संदेह नहीं।

संस्कृत: सर्वे पक्षिण: – आम्‌ आम्‌ – कश्चित्‌ खग: एव वनराज: भविष्यति।

हिंदी: सभी पक्षी – हाँ, अब कोई पक्षी ही जंगल का राजा बनेगा।

संस्कृत: (परं कश्चिदपि खग: आत्मानं विना नान्यं योग्यं चिन्तयन्ति…)

हिंदी: लेकिन हर पक्षी खुद को ही योग्य मानता है, कोई दूसरे को नहीं। तब सबने गहरी नींद में सोते उल्लू को देखा—

संस्कृत: यदेष: आत्मश्लाघाहीन: पदनिर्लिप्त: उलूक एवास्माकं राजा भविष्यति।

हिंदी: यह उल्लू आत्मप्रशंसा से रहित और पद के मोह से मुक्त है, यही हमारा राजा होगा।

उल्लू का विरोध और प्रकृति माता का प्रवेश

संस्कृत: काक: – सर्वथा अयुक्तमेतत्‌… दिवान्धस्यास्य करालवक्त्रस्याभिषेकार्थं सज्जा:?

हिंदी: कौआ – यह बिल्कुल अनुचित है कि दिन के अंधे और भयानक मुख वाले उल्लू को राजा बनाया जाए।

संस्कृत: पूर्ण दिनं यावत्‌ निद्रा यमाण: एष: कथमस्मान्‌ रक्षिष्यति?

हिंदी: जो पूरा दिन सोता रहता है, वह हमारी रक्षा कैसे करेगा?

संस्कृत: वस्तुतस्तु – स्वभावरौद्रं क्रूरम्‌… उलूकं नृपतिं कृत्वा का नु सिद्धिर्भविष्यति॥

हिंदी: वास्तव में क्रूर स्वभाव वाले उल्लू को राजा बनाकर क्या लाभ होगा?

संस्कृत: (तत: प्रविशति प्रकृतिमाता)

हिंदी: तभी प्रकृति माता प्रवेश करती हैं।

प्रकृति माता का संदेश

संस्कृत: प्रकृतिमाता – भो: प्राणिन:! यूयम्‌ सर्वे मे सन्तति:।

हिंदी: प्रकृति माता – हे जीवों! तुम सब मेरी संतान हो।

संस्कृत: कथं मिथ: कलहं कुरूथ?

हिंदी: तुम आपस में क्यों झगड़ते हो?

संस्कृत: वस्तुत: सर्वे वन्यजीविन: अन्योन्याश्रिता:।

हिंदी: सभी वन्य जीव एक-दूसरे पर आश्रित हैं।

संस्कृत: सदैव स्मरत – ददाति, प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति, पृच्छति…

हिंदी: हमेशा याद रखो – जो देता है, लेता है, सलाह देता है, पूछता है – वही मित्र है।

संस्कृत: भुङ्क्ते भोजयते चैव – षड्विधं प्रीतिलक्षणम्‌॥

हिंदी: खाता है और खिलाता है – ये प्रेम के छह लक्षण हैं।

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समापन

संस्कृत: मात:! कथयति तु भवती सम्यक्‌, परं वयं भवतीं न जानीम:।

निष्कर्ष (Conclusion)

“सौहार्दं प्रकृतेः शोभा” पाठ हमें यह सिखाता है कि नेतृत्व बल, रूप या पद की लालसा से नहीं, बल्कि सेवा, करुणा और सहयोग की भावना से आता है। जंगल के राजा की बहस में हर जीव अपनी योग्यता बताता है, लेकिन अंत में प्रकृति माता का संदेश स्पष्ट होता है—विवाद नहीं, मिलन और रक्षण ही सच्चा सौंदर्य है।

EaseEdu की ओर से छात्रों को यह सलाह है कि वे इस पाठ को केवल अनुवाद के रूप में न देखें, बल्कि इसके भाव, संवाद और जीवन मूल्यों को समझें। यही समझ उन्हें परीक्षा में सफलता दिलाएगी और जीवन में भी मार्गदर्शन देगी।

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