कक्षा 8 संस्कृत – पाठ 4: सदैव पुरतो निधेहि चरणम् | सम्पूर्ण हिन्दी अनुवाद
पाठ परिचय
यह गीत श्रीधर भास्कर वर्णेकर द्वारा रचित है। इसमें जीवन में आने वाली कठिनाइयों को स्वीकार कर आगे बढ़ने का संदेश दिया गया है। यह कविता साहस, आत्मबल, राष्ट्रप्रेम और लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है।
श्लोक 1
चल चल पुरतो निधेहि चरणम्। सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।
हिन्दी अनुवाद: चलो-चलो, आगे कदम बढ़ाओ। हमेशा आगे कदम बढ़ाओ। अर्थात् जीवन में कभी रुकना नहीं चाहिए, निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए।
श्लोक 2
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्। विनैव यानं नगारोहणम्।। बलं स्वकीयं भवति साधनम्। सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।
हिन्दी अनुवाद: निश्चित रूप से तुम्हारा घर पर्वत की चोटी पर है। हमें बिना किसी वाहन के पर्वत पर चढ़ना है। अपना बल ही हमारा साधन है। इसलिए हमेशा आगे कदम बढ़ाओ।
श्लोक 3
पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः। हिंस्राः पशवः परितो घोराः।। सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्। सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।
हिन्दी अनुवाद: मार्ग में टेढ़े-मेढ़े और नुकीले पत्थर होंगे। चारों ओर भयंकर हिंसक पशु होंगे। यद्यपि यात्रा अत्यधिक कठिन होगी, फिर भी हमेशा आगे कदम बढ़ाओ।
श्लोक 4
जहीहि भीतिं भज भज शक्तिम्। विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्।। कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्। सदैव पुरतो निधेहि चरणम्।।
हिन्दी अनुवाद: भय को त्याग दो। शक्ति को अपनाओ और राष्ट्र से प्रेम करो। निरंतर अपने लक्ष्य का स्मरण करो। हमेशा आगे कदम बढ़ाओ।
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Class 8th Sanskrit Chapter 3 Hindi Translation
निष्कर्ष : Class 8th Sanskrit Chapter 4 Hindi Translation
यह कविता छात्रों को जीवन में आने वाली कठिनाइयों से डरने के बजाय उनका सामना करने और निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। यह आत्मबल, राष्ट्रप्रेम और लक्ष्य के प्रति समर्पण का संदेश देती है।